डोनाल्ड ट्रंप और टैरिफ वार (Tariff War)

डोनाल्ड ट्रंप और ट्रेड वॉर

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🧠 1. टैरिफ वार क्या होता है?

डोनाल्ड ट्रंप, अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति, ने अपने पहले कार्यकाल (2017-2021) और वर्तमान कार्यकाल (2025 से शुरू) में व्यापार नीतियों, विशेष रूप से टैरिफ (आयात शुल्क) के जरिए वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाली कई महत्वपूर्ण नीतियां लागू की हैं। ट्रंप की टैरिफ नीति, जिसे अक्सर “ट्रेड वॉर” के रूप में जाना जाता है, ने वैश्विक व्यापार, अर्थव्यवस्थाओं, और भू-राजनीतिक संबंधों पर गहरा असर डाला है।

जब एक देश दूसरे देश से आने वाली वस्तुओं पर आयात कर (Import Duty या Tariff) बढ़ा देता है, तो उस देश की वस्तुएं महंगी हो जाती हैं। अगर दूसरा देश भी जवाब में ऐसा ही करता है, तो इसे टैरिफ युद्ध (Tariff War) कहते हैं। यह व्यापार के रास्ते में दीवार खड़ी करने जैसा है।

🇺🇸 2. ट्रंप ने टैरिफ वार क्यों शुरू किया?

ट्रंप की व्यापार नीति का मूल सिद्धांत “अमेरिका फर्स्ट” है। उनका मानना है कि वैश्विक व्यापार में अमेरिका को कई देशों ने “लूटा” है, जिसके परिणामस्वरूप अमेरिका का व्यापार घाटा बढ़ा और घरेलू विनिर्माण क्षेत्र कमजोर हुआ। ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल से ही टैरिफ को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया, ताकि अमेरिकी उत्पादों को बढ़ावा दिया जाए, नौकरियां वापस लाई जाएं, और व्यापारिक असंतुलन को कम किया जाए। उनकी नीति के प्रमुख पहलू निम्नलिखित हैं:

1. पारस्परिक टैरिफ (Reciprocal Tariff): ट्रंप का तर्क है कि अगर कोई देश अमेरिकी उत्पादों पर उच्च टैरिफ लगाता है, तो अमेरिका को भी उसी स्तर का टैरिफ उस देश के उत्पादों पर लगाना चाहिए। यह नीति उनके “निष्पक्ष व्यापार” के दृष्टिकोण का हिस्सा है।

2. घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा: ट्रंप ने बार-बार जोर दिया है कि अमेरिका में विनिर्माण क्षेत्र को पुनर्जनन की आवश्यकता है। टैरिफ के जरिए आयातित सामान को महंगा करके, वे स्थानीय उत्पादन को प्रोत्साहित करना चाहते हैं।

3. ब्रिक्स और अन्य देशों पर दबाव: ट्रंप ने विशेष रूप से ब्रिक्स देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) पर टैरिफ की धमकी दी है, खासकर उन देशों पर जो अमेरिकी डॉलर के बजाय वैकल्पिक मुद्राओं में व्यापार करने की कोशिश कर रहे हैं।

4. चीन पर विशेष फोकस: ट्रंप की नीति में चीन हमेशा से प्राथमिक लक्ष्य रहा है, क्योंकि अमेरिका का सबसे बड़ा व्यापार घाटा चीन के साथ है। उनके पहले कार्यकाल में शुरू हुआ ट्रेड वॉर मुख्य रूप से चीन के खिलाफ था, और वर्तमान में भी यह जारी है।

🌏 3. ट्रंप का टैरिफ वार: घटनाक्रम (Timeline)

पहला कार्यकाल (2017-2021)

ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में कई देशों पर टैरिफ लगाए, जिनमें शामिल हैं:

 चीन: 2018 में, ट्रंप प्रशासन ने चीनी उत्पादों पर 25% टैरिफ लगाया, जिसका मूल्य लगभग 250 बिलियन डॉलर था। इसके जवाब में, चीन ने भी अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ लगाए, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा।

कनाडा और मैक्सिको: नाफ्टा (NAFTA) समझौते को संशोधित करके यूएसएमसीए (USMCA) लागू किया गया, लेकिन इस दौरान कनाडा और मैक्सिको पर स्टील और एल्यूमिनियम जैसे उत्पादों पर टैरिफ लगाए गए।

भारत: ट्रंप ने भारत पर स्टील और एल्यूमिनियम पर 25% टैरिफ लगाया, जिसके जवाब में भारत ने अमेरिकी उत्पादों, जैसे बादाम और सेब, पर जवाबी टैरिफ लगाए।

इन नीतियों ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को प्रभावित किया और कई देशों में महंगाई बढ़ी।

दूसरा कार्यकाल (2025 से)

ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद, उनकी टैरिफ नीति और भी आक्रामक हो गई है। कुछ प्रमुख कदम:

चीन, कनाडा, और मैक्सिको पर टैरिफ: ट्रंप ने 2025 में चीन पर 10% और कनाडा व मैक्सिको पर 25% टैरिफ लगाने की घोषणा की। इसके जवाब में कनाडा ने भी अमेरिकी सामानों पर 25% टैरिफ लगाया।

भारत पर 27% टैरिफ: अप्रैल 2025 में, ट्रंप ने भारत से आयात होने वाले उत्पादों पर 27% टैरिफ लगाने की घोषणा की। यह कदम अमेरिकी व्यापार घाटे को कम करने के लिए उठाया गया, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह विश्व व्यापार संगठन (WTO) नियमों का उल्लंघन करता है।

ब्रिक्स देशों पर अतिरिक्त दबाव: ट्रंप ने ब्रिक्स देशों को चेतावनी दी कि अगर वे अमेरिकी विरोधी नीतियों (जैसे डॉलर के बजाय नई मुद्रा में व्यापार) को अपनाएंगे, तो उन्हें 10% अतिरिक्त टैरिफ का सामना करना पड़ेगा।

90 देशों पर टैरिफ: अप्रैल 2025 में, ट्रंप ने 90 से अधिक देशों पर टैरिफ लागू किए, जिससे वैश्विक शेयर बाजारों में हड़कंप मच गया और कई अर्थव्यवस्थाएं रिसेशन की कगार पर पहुंच गईं।

💥 4. वैश्विक असर

भारत, जो अमेरिका का एक महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार है, ट्रंप की टैरिफ नीति से काफी प्रभावित हुआ है। भारत से अमेरिका को निर्यात होने वाले प्रमुख उत्पादों में फार्मास्यूटिकल्स, कपड़ा, ऑटो पार्ट्स, और स्टील शामिल हैं।

   निर्यात पर असर: भारत का अमेरिका को सालाना निर्यात लगभग 53 बिलियन डॉलर का है। 27% टैरिफ लागू होने से भारतीय उत्पाद अमेरिकी बाजार में महंगे हो जाएंगे, जिससे निर्यात में कमी आ सकती है।

शेयर बाजार में अस्थिरता: टैरिफ की घोषणाओं के बाद भारतीय शेयर बाजारों में भारी गिरावट देखी गई, खासकर टेक और निर्यात-निर्भर कंपनियों के शेयरों में।

ट्रंप की टैरिफ नीति का असर केवल भारत तक सीमित नहीं है। यह वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी भारी पड़ रहा है:

वैश्विक व्यापार युद्ध: कनाडा, मैक्सिको, और चीन जैसे देशों ने जवाबी टैरिफ लगाए हैं, जिससे एक नए व्यापार युद्ध की शुरुआत हो चुकी है।

महंगाई और रिसेशन का खतरा: टैरिफ के कारण आयातित सामान महंगे हो रहे हैं, जिससे अमेरिका सहित कई देशों में महंगाई बढ़ रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह वैश्विक रिसेशन का कारण बन सकता है।

आपूर्ति श्रृंखला पर प्रभाव: टैरिफ ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित किया है, जिससे सेमीकंडक्टर, ऑटोमोबाइल, और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्र प्रभावित हुए हैं।

अवसर की संभावना:

   कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप की नीति भारत के लिए एक अवसर हो सकती है। चीन और अमेरिका के बीच बढ़ते तनाव के कारण, कंपनियां अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं को चीन से भारत जैसे देशों में स्थानांतरित कर सकती हैं।

✍️ अंतिम बात

डोनाल्ड ट्रंप का टैरिफ वॉर सिर्फ आर्थिक युद्ध नहीं था, यह राजनीतिक, रणनीतिक और वैचारिक लड़ाई भी थी। यह व्यापार में “America First” और “Protectionism” की वापसी का प्रतीक था। इससे यह जरूर सिद्ध हुआ कि व्यापार अब केवल लाभ का मामला नहीं रहा, बल्कि यह भविष्य की भू-राजनीति को तय करने का माध्यम बन गया है।

भारत जैसे देशों के लिए यह एक दोधारी तलवार है—एक ओर यह आर्थिक चुनौतियां ला रहा है, तो दूसरी ओर यह नए अवसर भी प्रदान कर सकता है।

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