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क्लास में ना लास्ट बेंच, ना फर्स्ट बेंच

केरल की अनूठी पहल: क्लास में ना लास्ट बेंच, ना फर्स्ट बेंच, सभी बच्चे बराबर

केरल, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और प्रगतिशील सोच के लिए जाना जाता है, ने एक बार फिर शिक्षा के क्षेत्र में एक अनोखा कदम उठाया है, जो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। हाल ही में एक तस्वीर ने लोगों का ध्यान खींचा, जिसमें स्कूल के बच्चे पारंपरिक सीधी पंक्तियों में नहीं, बल्कि एक गोल या यू-आकार (U-shaped) व्यवस्था में बैठे नजर आए। इस तस्वीर के साथ संदेश था कि अब केरल के स्कूलों में कोई बच्चा “लास्ट बेंचर” या “फर्स्ट बेंचर” नहीं होगा—सभी बच्चे बराबर होंगे। यह पहल न केवल शैक्षिक समानता को बढ़ावा देती है, बल्कि बच्चों के बीच एकता और शिक्षक की निगरानी को भी सुनिश्चित करती है।

नई बैठने की व्यवस्था का मकसद

केरल सरकार ने स्कूलों में बच्चों के बैठने की इस नई व्यवस्था को लागू करने का फैसला लिया है, जिसके पीछे का उद्देश्य है—हर बच्चे को समान अवसर और शिक्षक का ध्यान देना। पारंपरिक कक्षा व्यवस्था में, जो बच्चे आगे की पंक्तियों में बैठते हैं, उन्हें अक्सर “फर्स्ट बेंचर” के रूप में देखा जाता है, जिन्हें शिक्षक का अधिक ध्यान मिलता है। वहीं, पीछे बैठने वाले बच्चों को “बैक बेंचर” कहकर मजाक में लिया जाता है, और कई बार वे शिक्षक की निगरानी से दूर रहते हैं। इस नई यू-आकार की व्यवस्था में, शिक्षक कक्षा के बीच में खड़े होकर पढ़ाते हैं, जिससे उनकी नजर हर बच्चे पर रहती है। इससे बच्चों के बीच भेदभाव की भावना खत्म होती है और सभी को समान रूप से सीखने का मौका मिलता है।

प्रेरणा का स्रोत

सोशल मीडिया पर वायरल हो रही पोस्ट्स के अनुसार, इस पहल की प्रेरणा एक मलयालम फिल्म से ली गई है। यह फिल्म, जो शिक्षा और समानता के मुद्दों पर आधारित थी, ने इस अनूठे विचार को सामने लाया। केरल सरकार ने इसे हकीकत में बदलने का फैसला किया, जो इस बात का प्रमाण है कि कला और सिनेमा समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। यह कदम न केवल बच्चों के बीच समानता को बढ़ावा देता है, बल्कि शिक्षकों को भी सभी बच्चों पर बराबर ध्यान देने के लिए प्रोत्साहित करता है।

शिक्षा में समानता की दिशा में एक कदम

केरल की यह पहल शिक्षा के क्षेत्र में समानता और समावेशिता को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह न केवल बच्चों के बीच भेदभाव को कम करता है, बल्कि शिक्षकों को भी सभी बच्चों पर समान ध्यान देने के लिए प्रेरित करता है। इस व्यवस्था से बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ेगा और वे बिना किसी हीन भावना के सीखने की प्रक्रिया में शामिल हो सकेंगे।

अन्य राज्यों के लिए प्रेरणा

केरल की इस पहल को देखते हुए, अन्य राज्यों को भी अपनी शिक्षा प्रणाली में ऐसे नवाचारों को अपनाने पर विचार करना चाहिए। यह न केवल बच्चों के शैक्षिक अनुभव को बेहतर बनाएगा, बल्कि समाज में समानता और एकता की भावना को भी बढ़ावा देगा।

निष्कर्ष

केरल की यह नई सिटिंग व्यवस्था न केवल एक तस्वीर के रूप में वायरल हुई है, बल्कि यह एक विचार के रूप में भी लोगों के दिलों में जगह बना रही है। यह पहल हमें सिखाती है कि छोटे-छोटे बदलाव भी समाज में बड़ा प्रभाव डाल सकते हैं। केरल ने एक बार फिर साबित किया है कि शिक्षा और समानता के क्षेत्र में वह हमेशा एक कदम आगे रहता है। इस तरह की पहलें न केवल बच्चों के भविष्य को उज्ज्वल करती हैं, बल्कि पूरे समाज को एक बेहतर दिशा में ले जाती हैं।

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