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एक भारतीय नर्स : संघर्ष, त्रासदी और उम्मीद की लंबी कहानी

बेहतर जीवन और अपने परिवार को आर्थिक मजबूती देने के सपने के साथ भारत की केरल राज्य की नर्स निमिषा प्रिया 2008 में यमन पहुँची थीं। वर्तमान में यमन की राजधानी सना में केंद्रीय जेल में बंद हैं। उन्हें 2017 में एक यमनी नागरिक, तलाल अब्दो मेहदी की हत्या के आरोप में 2020 में मृत्युदंड की सजा सुनाई गई थी। लेकिन यहां उनकी ज़िंदगी ने वो मोड़ लिया, जिसने न केवल उनके परिवार बल्कि समूचे भारत को झकझोर दिया। आज निमिषा यमन की जेल में मौत की सजा के इंतजार में हैं और उनके जीवन की कहानी प्रवासी भारतीयों के संघर्ष, न्याय व्यवस्था की जटिलता और मानवीयता की गंभीर चुनौती बन गई है, कहानी न केवल व्यक्तिगत त्रासदी को दर्शाती है, बल्कि उन प्रवासी भारतीयों की चुनौतियों और जोखिमों को भी उजागर करती है, जो बेहतर भविष्य की तलाश में विदेशों में काम करने जाते हैं। कहानी न केवल उनके परिवार के लिए, बल्कि उन सभी के लिए एक मार्मिक अपील है जो मानवता, न्याय और कूटनीतिक हस्तक्षेप की शक्ति में विश्वास रखते हैं।

निमिषा प्रिया का जन्म 1 जनवरी 1989 को केरल के पलक्कड़ जिले में हुआ था। उनका परिवार आर्थिक रूप से कमजोर था, उनके माता-पिता घरेलू सहायकों के रूप में काम करते थे। पढ़ाई में होशियार निमिषा ने स्थानीय चर्च की सहायता से नर्सिंग की पढ़ाई की, बेहतर कमाई और अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने के सपने के साथ, निमिषा 2008 में यमन चली गईं। वहां उन्होंने सना में एक सरकारी अस्पताल में नर्स के रूप में काम शुरू किया।

2011 में, निमिषा भारत लौटीं और कोच्चि में टॉमी थॉमस नामक एक ऑटो-रिक्शा चालक से शादी की। और शादी के एक महीने बाद दोनों पति-पत्नी यमन लौट जाते हैं. यमन में थॉमस को भी कम सैलरी वाली इलेक्ट्रिशियन असिस्टेंट की नौकरी मिल जाती है. 2012 में निमिषा ने एक बेटी को जन्म दिया . बेटी जब थोड़ी बड़ी हुई तो थॉमस 2014 में उसे लेकर वापस केरल लौट गए और निमिषा ने यमन में रहकर ही नौकरी जारी रखने का फैसला किया ताकि अपने परिवार का समर्थन कर सकें। इस बार, उन्होंने अपना खुद का मेडिकल क्लिनिक शुरू करने का फैसला किया, यमनी कानून के अनुसार, उन्हें एक स्थानीय व्यवसायी साथी की आवश्यकता थी, इस दौरान निमिषा की मुलाकात कपड़े की दुकान चलाने वाले महदी से हुई। महदी की पत्नी की डिलीवरी निमिषा ने ही कराई थी। क्लिनिक खोलने के लिए निमिषा ने यमनी नागरिक तलाल अब्दो महदी को साझेदार बनाया। जनवरी 2015 में निमिषा बेटी मिशाल से मिलने भारत आईं तब अब्दो महदी भी उनके साथ भारत आया। इस दौरान अब्दो महदी ने निमिषा की शादी की एक तस्वीर चुरा कर अपने साथ रख ली.

क्लिनिक शुरू करने के लिए निमिषा ने परिवार वालों और दोस्तों से रुपए जुटाए और यमन पहुंचकर क्लिनिक शुरू कर लिया। निमिषा ने पति और बेटी को यमन बुलाने के लिए कागजी काम शुरू किया, लेकिन 2015में वहां गृहयुद्ध छिड़ गया और वे लोग यमन नहीं आ पाए। निमिषा और तलाल अब्दो मेहदी के बीच शुरू में व्यावसायिक साझेदारी थी, लेकिन जल्द ही यह रिश्ता तनावपूर्ण हो गया। निमिषा के अनुसार, तलाल ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया, उनकी आय को नियंत्रित किया, उनके दस्तावेज और पासपोर्ट जब्त कर लिया, और तस्वीर के साथ छेड़छाड़ कर पति के रूप में खुद की फोटो एडिट करवा दी और निमिषा का पति होने का दावा किया.निमिषा ने पुलिस में महदी की शिकायत भी दर्ज कराई, लेकिन पुलिस ने निमिषा को ही 6 दिनों की हिरासत में ले लिया, क्योंकि महदी ने एडिटेड फोटो दिखाकर निमिषा का पति होने का दावा किया। कई बार पुलिस शिकायत के बावजूद स्थानीय प्रशासन ने साथ नहीं दिया

2017 में घटनाएँ चरम पर पहुँच गईं। खुद के बचाव और पासपोर्ट वापस पाने के इरादे से, निमिषा ने महदी को बेहोश करने के लिए केटामीन दी, जिससे उसकी मृत्यु हो गई। घबराहट में, अपने एक सहयोगी के साथ मिलकर शव के टुकड़े करके पानी की टंकी में डाल दिया गया। पुलिस ने उन्हें सऊदी सीमा के पास गिरफ्तार किया

2018 में, निमिषा का मुकदमा यमन की एक स्थानीय अदालत में चला। उनके वकील, के. आर. सुभाष चंद्रन के अनुसार, यह मुकदमा पूरी तरह से अरबी भाषा में हुआ, जिसे निमिषा नहीं समझती थीं, और उन्हें न तो दुभाषिया प्रदान किया गया और न ही कोई वकील। 2020 में, उन्हें मृत्युदंड की सजा सुनाई गई। 2023 में, यमन की सुप्रीम ज्यूडिशियल काउंसिल ने उनकी अपील को खारिज कर दिया। दिसंबर 2024 में, यमन के राष्ट्रपति राशद अल-अलीमी ने उनकी सजा को मंजूरी दी, और उनकी फांसी की तारीख 16 जुलाई 2025 निर्धारित की थी।

यमन में हत्या के मामलों में शरिया कानून लागू होता है। इसमें क़िसास (God’s Law) के तहत मृतक के परिवार को बदले या ‘ब्लड मनी’ के विकल्प दिए जाते हैं। अगर परिवार मुआवज़ा स्वीकार कर ले, तो आरोपी को माफी मिल जाती है। लेकिन महदी के परिवार ने बार-बार ‘मुआवज़ा’ स्वीकारने से इनकार किया और फांसी पर ही जोर दिया। भारतीय समुदाय, सरकार और NGO ने पिछले सालों में करोड़ों रुपये इकठ्ठा कर ‘ब्लड मनी’ चुकाने की कोशिश की, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली

भारत सरकार ने इस मामले को अत्यंत संवेदनशील बताया है। विदेश मंत्रालय, सुप्रीम कोर्ट, और सामाजिक संगठनों ने लगातार कानूनी, आर्थिक और कूटनीतिक प्रयास किए। भारत की यमन में कोई कूटनीतिक उपस्थिति नहीं है, इसलिए मामला और भी जटिल हो गया और दूतावास, सऊदी अरब से पूरा मामला संभाल रहा है। भारत ने वकील नियुक्त किया, आवश्यक दस्तावेज जुटाए, और कई बार स्थानीय अधिकारियों से संपर्क साधा

जुलाई 2025 में, केरल के एक प्रभावशाली सुन्नी मुस्लिम धर्मगुरु, शेख कंथापुरम ए. पी. अबूबकर मुस्लियार (जिन्हें ‘ग्रैंड मुफ्ती ऑफ इंडिया’ के रूप में जाना जाता है), ने यमनी विद्वान हबीब उमर बिन हफीज के माध्यम से हस्तक्षेप किया। इस हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप, 16 जुलाई 2025 को निर्धारित निमिषा की फांसी को स्थगित कर दिया गया।

निमिषा की मां, पति और बेटी बीते आठ सालों से संघर्षरत हैं। बार-बार अदालतों और उच्च अधिकारियों का दरवाजा खटखटाने के बावजूद भी परिवार को उम्मीद की झलक अब तक नहीं मिली। सोशल मीडिया, भारत के कई बड़े मीडिया हाउस, और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन भी मामले को लेकर सरकार पर दबाव बना रहे हैं

2020 में उनके परिजनों और दोस्तों ने ‘Save Nimisha Priya International Action Council’ नाम से एक संगठन भी बनाया, जिसने ना केवल कानूनी लड़ाई लड़ी बल्कि फंड जुटाने में भी मदद की और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी जागरुकता फैलाई

निमिषा का मामला कई नैतिक और कानूनी प्रश्न उठाता है। उनके समर्थकों का तर्क है कि निमिषा ने आत्मरक्षा में कार्य किया। उनके वकील का कहना है कि निमिषा का इरादा हत्या करना नहीं था, बल्कि केवल अपने दस्तावेज वापस लेना था। यह मामला केवल निमिषा की त्रासदी नहीं, बल्कि ऐसे सैकड़ों प्रवासी भारतीयों की जटिल स्थिति की कहानी है, जो गल्फ देशों या अफ्रीका में आज भी बेहद कठिन परिस्थितियों में काम कर रहे हैं। यमन जैसे देशों में, जहां लंबे समय से युद्ध, अस्थिरता और तानाशाही जैसी स्थितियाँ हैं, विदेशी नागरिकों की अवज्ञा या न्यायिक प्रक्रिया में भाषा–कानून की बाधाएँ आम हैं भारतीय सरकार मानती है कि एक निर्दोष महिला जिसने केवल खुद को बचाने के लिए हड़बड़ाहट में एक खतरनाक कदम उठाया, उसकी जिंदगी बचाई जानी चाहिए। लेकिन यमन का धार्मिक व स्थानीय समाज इसे विदेशी हस्तक्षेप मानता है, और न्याय की मांग बनाम दया की मांग के बीच संतुलन बनाना मुश्किल हो गया है, July 2025 तक निमिषा की सजा टाल दी गई है, लेकिन उनकी जान अभी भी “मृतक के परिवार की माफी” या अदालती हस्तक्षेप पर ही टिकी है। सभी कानूनी रास्ते बंद हो चुके हैं। केवल कूटनीतिक बातचीत, मानवीयता और सामाजिक दबाव ही उम्मीद का रास्ता हैं

निमिषा प्रिया की दास्तान केवल एक महिला की त्रासदी नहीं, बल्कि मौजूदा वैश्विक व्यवस्था, मानवीयता, अंतरराष्ट्रीय संबंधों और धार्मिक कानूनों के टकराव की मिसाल है। उनकी बेबस माँ, मासूम बेटी, और लड़ते हुए समाज को अब भी उम्मीद है कि किसी स्तर पर इंसानियत जीतेगी और निमिषा को अपने देश लौटने का मौका मिलेगा। आज हर भारतीय, हर मानवतावादी और हर प्रवासी परिवार इस कहानी से सवाल पूछ रहा है—क्या सरहदों, धर्म और कानून के नाम पर एक जीवन की कीमत लगाई जा सकती है? आने वाले दिन निमिषा की तक़दीर तो तय करेंगे ही, साथ ही भारत सहित हर प्रवासी देश के लिए भी नीतियाँ और मानवीय मूल्यों की कसौटी भी बनेंगे

निमिषा प्रिया की कहानी एक ऐसी त्रासदी है जो प्रवासी श्रमिकों के सामने आने वाली चुनौतियों, विदेशी कानूनी प्रणालियों की जटिलताओं, और कूटनीतिक सीमाओं को उजागर करती है। यह एक ऐसी कहानी है जो मानवता, करुणा, और न्याय के बीच संतुलन की मांग करती है। निमिषा के परिवार और समर्थकों की उम्मीद अब भी बरकरार है, लेकिन समय तेजी से बीत रहा है। यह मामला भारत सरकार और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए एक चुनौती है कि वे अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए हर संभव प्रयास करें, खासकर उन क्षेत्रों में जहां कूटनीतिक पहुंच सीमित है।
निमिषा की कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि प्रवासियों के सपने, जो अक्सर आर्थिक बेहतरी की तलाश में शुरू होते हैं, कभी-कभी अप्रत्याशित और दुखद मोड़ ले सकते हैं। उनकी रिहाई के लिए चल रहे प्रयास न केवल उनके जीवन को बचाने की कोशिश हैं, बल्कि उन सभी भारतीयों के लिए एक संदेश हैं जो विदेशों में अपने सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

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