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HMT: घड़ी से लेकर मशीन तक, उदय, उत्कर्ष और अवसान की कहानी

एक ज़माने में स्टेटस सिंबल, गौरवशाली लेकिन अधूरी यात्रा

“जब समय भी भारतीय लगता था ।”

HMT (Hindustan Machine Tools) न केवल एक कंपनी थी, बल्कि आत्मनिर्भर भारत के शुरुआती सपनों की एक जीती-जागती मिसाल थी। एक ऐसा ब्रांड, जिसने देश को मशीन टूल्स, ट्रैक्टर, घड़ियां, CNC मशीन और वैज्ञानिक उपकरणों से लैस किया, लेकिन जो धीरे-धीरे अपनी चमक खो बैठा। हिंदुस्तान मशीन टूल्स (HMT) एक ऐसी भारतीय कंपनी थी, जिसने न केवल देश के औद्योगिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया, बल्कि अपनी घड़ियों के माध्यम से लाखों भारतीयों की कलाइयों को सजाया। यह एक ऐसी कंपनी थी, जिसका नाम कभी समय का पर्याय था।

एचएमटी की शुरुआत: एक स्वदेशी सपना, स्थापना और उद्देश्य

HMT की स्थापना 1953 में भारत सरकार द्वारा एक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी यानी सरकारी कंपनी (PSU) के रूप में की गई थी। इसका पूरा नाम हिंदुस्तान मशीन टूल्स लिमिटेड था, और इसका मुख्य उद्देश्य भारत को औद्योगिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना था। बेंगलुरु में स्थापित HMT की पहली इकाई का लक्ष्य मशीन टूल्स का निर्माण करना था, जो उस समय के तत्नकालीन नवोदित औद्योगिक भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण थे। कंपनी ने जापान की सिटीजन वॉच कंपनी के सहयोग से 1961 में घड़ी निर्माण प्रारंभ किया, जो HMT की सबसे बड़ी पहचान बन गई HMT की पहली घड़ी 1962 में बनकर तैयार हुई, जिसे भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को भेंट किया गया। नेहरू ने इसे “भारत की घड़ी” कहा, जिसने कंपनी को एक राष्ट्रीय पहचान दी। बेंगलुरु में स्थापित इसकी पहली वॉच फैक्ट्री सालाना लाखों घड़ियां बनाने की क्षमता रखती थी। कंपनी ने जल्द ही विस्तार किया और घड़ियों के साथ-साथ ट्रैक्टर, प्रिंटिंग मशीनरी, बेयरिंग्स, और अन्य औद्योगिक उपकरणों का निर्माण शुरू किया। HMT का उद्देश्य न केवल उत्पादन था, बल्कि यह स्वदेशी तकनीक और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन गया। कंपनी ने ‘जनता’, ‘पायलट’, ‘कंचन’, ‘सोना’, और ‘कोहिनूर’ जैसे मॉडल्स लॉन्च किए, जो हर वर्ग के लोगों के बीच लोकप्रिय हुए। 1970 के दशक में HMT ने क्वार्ट्ज घड़ियां भी पेश कीं, जैसे ‘सोना’ और ‘विजय’, जिसने इसे तकनीकी रूप से और मजबूत किया।

कंपनी का स्वर्णिम काल, सफलता की नयी ऊँचाई:

सरकारी कर्मचारियों की पहली घड़ी अक्सर HMT होती थी। शादियों में HMT देना गर्व की बात मानी जाती थी।

1960 और 1970 के दशक में HMT घड़ियों ने भारतीय बाजार पर एकछत्र राज किया। इस दौरान यह देश की सबसे बड़ी घड़ी निर्माता कंपनी थी, और इसकी घड़ियां हर कलाई की शान थीं। शादी-विवाह में HMT की घड़ियां तोहफे के रूप में दी जाती थीं, और इसे पहनना स्टेटस का प्रतीक माना जाता था। कंपनी के पास कई मॉडल थे, जिनकी कीमत 300 रुपये से लेकर 8000 रुपये तक थी। HMT को भारत सरकार का समर्थन प्राप्त था, और यह स्वदेशी उत्पाद के रूप में प्रचारित किया गया। यह उस समय के राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक था। HMT की घड़ियां टिकाऊ और सटीक थीं। ‘जनता’ और ‘पायलट’ जैसे मॉडल्स अपनी सादगी और मजबूती के लिए प्रसिद्ध थे। HMT का सेल और सर्विस नेटवर्क देश के लगभग हर जगह फैला था। कंपनी ने कलाई घड़ियों से लेकर पॉकेट वॉच तक बनाईं। यहां तक कि सोने का बिस्कुट लगी ‘जी-10’ घड़ी भी रानीबाग इकाई में बनाई गई, जिसकी कीमत 11,000 रुपये थी और यह हाथों-हाथ बिकी। 1980 के दशक तक HMT भारत में घड़ी का पर्याय बन चुका था। इसके विज्ञापन और टैगलाइन “देश की धड़कन” ने इसे हर भारतीय के दिल में जगह दी। यह वह दौर था जब घड़ी का मतलब HMT था, और बाजार में इसका कोई सानी नहीं था। “HMT Janata”, “Pilot”, “Kanchan”, “Sona” जैसी घड़ियाँ घर-घर में पहचान बन गईं।

ट्रैक्टर निर्माण:

1960 के दशक के अंत में भारत सरकार ने भारत में हरित क्रांति कार्यक्रम की शुरुआत की और मशीनीकरण की आवश्यकता ने कृषि ट्रैक्टरों की मांग बढ़ा दी। एचएमटी, एक बड़ी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी जिसने 1972 में एचएमटी ब्रांड नाम के तहत चेक गणराज्य की ज़ेटोर कंपनी से प्राप्त तकनीक के साथ कृषि ट्रैक्टरों का निर्माण शुरू किया बाद में, HMT ने अपनी खुद का ट्रैक्टर उत्पादन किया । किसानों के बीच विश्वसनीयता और मजबूती के लिए HMT ट्रैक्टरों की बड़ी मांग थी। HMT को “भारत का प्राइड” कहा जाने लगा। यह सरकारी उद्यमों की सफलता का प्रतीक बन गया। कंपनी ने 25 हॉर्सपावर (एचपी) से लेकर 75 हॉर्सपावर तक के ट्रैक्टर मॉडल पेश किए, जो भारतीय किसानों की विविध आवश्यकताओं को पूरा करते थे। कुछ लोकप्रिय मॉडल्स में एचएमटी 2522, 3522, 4922, 5911, और 7522 शामिल थे। एचएमटी ट्रैक्टर कठिन परिस्थितियों में काम करने के लिए डिज़ाइन किए गए थे। ये भारतीय खेतों की उबड़-खाबड़ जमीन और कठिन मौसम के लिए उपयुक्त थे।

90 के दशक में भारत में उदारीकरण के बाद, बाजार में निजी और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों की एंट्री हुई। जॉन डीरे, महिंद्रा, और स्वराज जैसे ब्रांडों ने आधुनिक तकनीक और आकर्षक डिज़ाइन के साथ ट्रैक्टर पेश किए। एचएमटी इन नई तकनीकों और बाजार की मांग के साथ तालमेल नहीं बिठा पाई। इसके अलावा, सरकारी कंपनी होने के कारण प्रबंधन में अक्षमता और बढ़ते घाटे ने भी कंपनी को प्रभावित किया। 2016 में, भारत सरकार ने एचएमटी की ट्रैक्टर डिवीजन, घड़ी डिवीजन, और अन्य इकाइयों को बंद करने का फैसला किया। इसके बावजूद, एचएमटी ट्रैक्टर आज भी कई किसानों के लिए एक सुनहरी यादें हैं। बहुत से लोग इन ट्रैक्टरों को उनकी मजबूती और विश्वसनीयता के लिए अब भी उपयोग करते हैं ।

एचएमटी ने अपने गौरवशाली इतिहास को संरक्षित करने के लिए 2019 में बेंगलुरु में एचएमटी हेरिटेज सेंटर और संग्रहालय की स्थापना की, जहाँ कंपनी के उत्पादों और योगदान को प्रदर्शित किया गया है। एचएमटी ट्रैक्टर भारतीय कृषि के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इन ट्रैक्टरों ने न केवल खेती को आधुनिक बनाया, बल्कि लाखों किसानों को सशक्त बनाया। हालांकि, बदलते समय और प्रतिस्पर्धा के कारण कंपनी को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन एचएमटी की विरासत आज भी जीवित है। यह हमें यह सिखाता है कि तकनीकी नवाचार और समय के साथ बदलाव को अपनाना कितना महत्वपूर्ण है। एचएमटी ट्रैक्टर की कहानी भारतीय उद्योग और कृषि के विकास की कहानी है, जो हमें गर्व के साथ-साथ भविष्य के लिए प्रेरणा भी देती है।

HMT का पतन: कहाँ चूक हो गई?

1990 के दशक में भारत में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत के साथ HMT के लिए चुनौतियां बढ़ने लगीं। 1991 में भारतीय बाजारों को वैश्विक कंपनियों के लिए खोल दिया गया, जिससे घड़ी उद्योग में प्रतिस्पर्धा तेज हो गई। टाटा समूह की टाइटन कंपनी ने 1995 में घड़ी निर्माण का लाइसेंस प्राप्त किया और आधुनिक डिजाइन, आकर्षक मार्केटिंग, और नई तकनीकों के साथ बाजार में प्रवेश किया। HMT ने समय के साथ अपनी तकनीक और डिजाइन को अपग्रेड नहीं किया। जहां टाइटन और अन्य अंतरराष्ट्रीय ब्रांड्स नए डिजाइन और क्वार्ट्ज तकनीक पर जोर दे रहे थे, वहीं HMT की घड़ियां पुरानी मानी जाने लगीं। टाइटन ने फैशन और स्टाइल पर ध्यान दिया, जिसने घड़ियों को केवल समय बताने का साधन नहीं, बल्कि फैशन का हिस्सा बना दिया। HMT इस बदलते रुझान के साथ तालमेल नहीं बिठा पाया। एक सरकारी कंपनी होने के नाते, HMT में निर्णय लेने की प्रक्रिया धीमी थी। हर फैसले के लिए सरकारी मंजूरी की जरूरत पड़ती थी, जिसके कारण कंपनी बाजार की मांगों के साथ तालमेल नहीं रख पाई। 1990 के दशक के मध्य से HMT को लगातार घाटा होने लगा। बढ़ते कर्ज और घटते उत्पादन ने कंपनी की स्थिति को और कमजोर किया।

1995 के बाद HMT का पतन तेज हो गया। कंपनी की कई इकाइयां घाटे में चल रही थीं, और 2014 में आर्थिक मामलों की कैबिनेट ने HMT की तीन इकाइयों को बंद करने का फैसला लिया। 2016 तक, HMT की घड़ी, ट्रैक्टर, और बेयरिंग डिवीजन सहित लगभग सभी इकाइयां बंद हो चुकी थीं। हल्द्वानी के रानीबाग में स्थित HMT की फैक्ट्री, जिसे 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उद्घाटित किया था, भी 2016 में पूरी तरह बंद हो गई।

विरासत और भविष्य की संभावनाएं:

HMT की घड़ियां आज भी कई लोगों के लिए सुनहरे बीते कल की यादों का प्रतीक हैं। बहुत से लोग इन्हें एंटीक वस्तुओं की तरह संजोकर रखते हैं। 2024 में खबरें आईं कि सरकार के तहत HMT को पुनर्जनन करने की योजना बन रही है। हालांकि, HMT का वर्तमान उत्पादन बहुत सीमित है, और इसकी आधिकारिक वेबसाइट पर क्वार्ट्ज, ऑटोमैटिक, और मैकेनिकल घड़ियों के कुछ मॉडल उपलब्ध हैं। फिर भी, स्मार्टवॉच और आधुनिक ब्रांड्स के दौर में HMT की वापसी एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।

HMT केवल एक कंपनी नहीं थी, वह आत्मनिर्भर भारत के पहले प्रयासों में से एक थी। उसने भारतीय wrists को समय से जोड़ा, और भारत के खेतों व उद्योगों को ताकत दी। लेकिन जिस कंपनी ने ‘समय’ दिया, वही समय के साथ नहीं चली, और यही उसकी हार की वजह बन गई।

HMT की कहानी एक स्वदेशी ब्रांड की उत्थान और पतन की गाथा है। यह कंपनी कभी भारत की शान थी, जिसने समय को न केवल मापा, बल्कि लाखों भारतीयों के दिलों में जगह बनाई। लेकिन समय के साथ तालमेल न रख पाने और बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने इसे इतिहास का हिस्सा बना दिया। आज HMT की घड़ियां उन लोगों के लिए एक यादगार स्मृति हैं, जिन्होंने इसके स्वर्णिम दौर को देखा। भविष्य में क्या HMT अपनी पुरानी शान को वापस पा सकेगी? यह समय ही बताएगा।

HMT कंपनी की कुछ घड़ियाँ ऑफिसियल वेबसाइट पर ऑनलाइन उपलब्ध है: क्लिक करें

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